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ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती के साथ ही सुहागिनों का महापर्व वट सावित्री व्रत 19 मई को


  •  शुक्रवार, 19 मई को तीन बड़े व्रत-पर्व हैं। इस दिन ज्येष्ठ अमावस्या, शनि जयंती मनाई जाएगी और वट सावित्री व्रत किया जाएगा। शुक्रवार को ज्येष्ठ मास का कृष्ण पक्ष खत्म होगा। इस दिन नदी स्नान, पूजा-पाठ, दान-पुण्य और मंत्र जप करने की परंपरा है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, ज्येष्ठ अमावस्या के समय गर्मी अपने पूरे प्रभाव में होती हैं। इस अमावस्या पर जल और छाया दान जरूर करना चाहिए। जल दान यानी किसी सार्वजनिक जगह पर प्याऊ लगवाएं या किसी प्याऊ में मटके का दान करें। पशु-पक्षियों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था करें। छाया दान यानी छाते का दान करें। किसी मंदिर में किसी अन्य सार्वजनिक जगह पर छायादार वृक्ष का पौधा लगाएं और उसकी देखभाल करने का संकल्प लें। जानिए ज्येष्ठ अमावस्या, शनि जयंती और वट सावित्री व्रत से जुड़ी खास बातें...

ज्येष्ठ अमावस्या

ज्येष्ठ अमावस्या पर गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। स्नान के बाद नदी किनारे पर ही जरूरतमंद लोगों को जूते-चप्पल, कपड़े, अनाज और धन का दान करना चाहिए। अगर नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो घर पर तीर्थों का और नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध कर्म करना चाहिए। दोपहर में गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और कंडे के अंगारों पर गुड़-घी डालें, हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें।

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री का महत्व सुहागिन महिलाओं के लिए काफी अधिक है। पुराने समय में इस दिन सावित्री ने तपस्या करके यमराज को प्रसन्न किया और अपने पति सत्यवान का जीवन बचाया था। पति की लंबी उम्र के लिए आज भी महिलाएं ये व्रत करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से घऱ-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। व्रत करने वाली महिलाएं बरगद की पूजा करती हैं और इस देव वृक्ष पर कच्चा सूत लपेटती हैं। पूजा में इस पेड़ की परिक्रमा की जाती है।

शनि जयंती

नौ ग्रहों में से एक शनि देव ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर ही अवतरित हुए थे। शनि देव नौ ग्रहों के न्यायाधीश हैं और यही ग्रह हमारे कर्मों का फल प्रदान करता है। शनि जयंती पर किए गए पूजा-पाठ से कुंडली के शनि दोषों को कम किया जा सकता है। शनि देव का तेल से अभिषेक करना चाहिए। नीले फूल और नीले वस्त्र चढ़ाएं। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। काले तिल से बने व्यंजनों का भोग लगाएं। शनि के मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम: का जप करें। शनि देव की कृपा पाने के लिए हनुमान जी की भी पूजा करनी चाहिए। शनि हनुमान जी के भक्तों पर टेढ़ी नजर नहीं रखता है।

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