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बाबा साहब की सीख - जब हम बड़े पद पर हों और हमारे पास कई अधिकार भी हों तो हमें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए


 आज भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती है। डॉ. अंबेडकर ने पूरे जीवन समाज सेवा की। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है। बाबा साहब के जीवन से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताए गए हैं। अगर इन सूत्रों की जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं...

कहानी 1. विद्यार्थी को परिश्रम, लगन, साधन के साथ ही लक्ष्य और भाषाओं पर भी ध्यान देना चाहिए

डॉ. भीमराव अंबेडकर के छात्र जीवन का किस्सा है। अंबेडकर अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय वे यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में सबसे पहले पहुंच जाते थे और लाइब्रेरी बंद होने तक लगातार पढ़ते थे। लाइब्रेरी का एक कर्मचारी हर रोज अंबेडकर को देखा करता था।

एक दिन उसने अंबेडकर से कहा कि मैं आपको रोज देखता हूं। यहां आपकी उम्र के कई विद्यार्थी हैं, वे पढ़ाई के साथ-साथ दूसरे काम भी करते हैं, मौज-मस्ती करते हैं, लेकिन आप सभी से अलग हैं, हमेशा सिर्फ पढ़ाई ही क्यों करते हैं?

अंबेडकर जी ने उस कर्मचारी से कहा कि मुझे बहुत पढ़ना है, क्योंकि मेरे पास भविष्य के लिए शिक्षा से जुड़ा एक बड़ा लक्ष्य है। मैं केवल अपने लिए पढ़ाई नहीं कर रहा हूं। भारत में मुझसे जुड़े कई लोग हैं, मुझे उनके लिए वर्तमान की शिक्षा से बहुत कुछ करना है।

अंबेडकर की बातें सुनकर कर्मचारी हैरान हो था, उसकी हैरानी और बढ़ गई, जब उसने देखा कि अंबेडकर अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं की किताबें भी बहुत ध्यान से पढ़ रहे हैं।

अपनी पढ़ाई के बाद डॉ. अंबेडकर भारत आ गए और काफी समय के बाद एक दिन लालबहादुर शास्त्री और उनके बीच संस्कृत में बातचीत हुई, जिसे देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। अंबेडकर जी का संस्कृत ज्ञान भी बहुत अच्छा था।

कहानी की सीख

इस किस्से में अंबेडकर जी ने हमें संदेश दिया है कि विद्यार्थियों को समय का सदुपयोग करना चाहिए, विद्यार्थी जीवन में सिर्फ पढ़ाई-लिखाई पर ही ध्यान दें, गलत कार्यों में समय बर्बाद न करें। जब विद्यार्थी परिश्रम, लगन, साधन के साथ ही लक्ष्य और भाषाओं पर भी ध्यान देगा तो बड़ी-बड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।

कहानी 2. जब हम बड़े पद पर हो और हमारे पास अधिकार भी हो तो हमें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए

बाबा साहब अंबेडकर को गुस्सा बहुत कम आता था, लेकिन एक दिन उन्हें अपने बेटे यशवंत राव पर बहुत गुस्सा आ रहा था। ये घटना 1943 की है। उस समय बाबा साहब वायसराय की काउंसिल में श्रम और पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बने थे। वे हर काम पूरी ईमानदारी से करते थे।

डॉ. अंबेडकर के बेटे यशवंत राव से एक बड़े ठेकेदार संपर्क किया। दरअसल, वह ठेकेदार गलत तरीके से कोई सरकार की ओर से बड़ा काम लेना चाहता था। यशवंत राव ठेकेदार की बातों में आ गए। दोनों के बीच ये बात तय हुई थी कि निर्माण का बड़ा काम उस ठेकेदार को मिल जाएगा तो वह यशवंत राव को कमीशन देगा। युवा यशवंत का मन भटक गया, पैसों की ओर आकर्षित हो गया। यशवंत ने अपने पिता से कहा, 'आप ये काम इस ठेकेदार को दे दीजिए, इसके लिए हमें कमीशन मिल जाएगा।

जब ये बात बाबा साहब को मालूम हुई तो उन्होंने गुस्सा में कहा कि मैं यहां राष्ट्र सेवा के लिए बैठा हूं, तुम जैसी संतान पालने के लिए नहीं। कर्तव्य सबसे महत्वपूर्ण है, इसके लिए परिवार के सदस्यों की आकांक्षाओं पर नियंत्रण होना चाहिए। अगर मैं तुम्हारी बात मानता हूं तो मैं बहुत बड़ा अपराध करूंगा। आज के बाद ऐसी बात खुद भी कभी मत करना और मेरे सामने भी मत लाना।

कहानी की सीख

जब हमारे पास बड़ा पद और अधिकार हों तो हमें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। बड़े पद पर कई तरह के प्रलोभन मिलते हैं, लेकिन हमें किसी गलत काम में नहीं उलझना चाहिए। परिवार के सदस्यों की अपेक्षाएं होती हैं, कुछ सदस्यों के मन में लालच भी आ सकता है, लेकिन हमें अपने अधिकारों का गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार लालच से ही पैदा होता है।


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