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अक्षय नवमी आज:देवताओं का पेड़ है आंवला, इसकी पूजा से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता

आज आंवला नवमी है। इस तिथि पर आंवले की पूजा से मिलने वाला पुण्य कभी नहीं खत्म होता है। इसलिए इसे अक्षय पुण्य देने वाला व्रत कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस व्रत में आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाने और उसे खाने से हर तरह की परेशानियां खत्म हो जाती है।

इस दिन महिलाएं अच्छी सेहत, संतान सुख और समृद्धि की कामना से आंवले के पेड़ के साथ विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करती हैं। व्रत भी रखती हैं। वैसे तो पूरे कार्तिक महीने में पवित्र नदियों में नहाने का महत्व है, लेकिन इस दिन तीर्थ स्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।

पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी तीर्थ स्नान के बाद आंवले के पेड़ के आस-पास सफाई करें।
पेड़ की जड़ में साफ पानी और फिर दूध चढ़ाएं। वहां की मिट्टी सिर पर लगाएं।
पूजन सामग्री से पेड़ की पूजा करें और 11 परिक्रमा करते हुए तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटें।
कुछ लोग 108 परिक्रमा भी करते हैं। पूजन के बाद पेड़ के नीचे बैठकर परिवार और साथी महिलाओं के साथ खाना खाएं।

आंवला पूजा और कद्दू दान की परंपरा
पद्म और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक आंवला नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नाम के राक्षस को मारा था। इसलिए अक्षय नवमी को कुम्हड़ा यानी कद्दू की पूजा कर के उसे दान किया जाता है। जिससे घर में शांति और संतान वृद्धि के साथ लंबी उम्र भी मिलती है। इस दिन आंवला पूजन से महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है।

एक मान्यता ये भी है कि कंस को मारने से पहले आंवला नवमी पर ही भगवान कृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी पर तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। इसलिए आंवला नवमी पर बहुत से लोग मथुरा- वृंदावन की परिक्रमा करते हैं। इस तिथि पर भगवान राधा-कृष्ण की पूजा से शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से भी मुक्ति मिलती है।

आंवले के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश
पद्मपुराण के मुताबिक आंवला भगवान विष्णु का ही रूप है। ये विष्णु को प्रिय है। इस पेड़ को याद कर के मन ही मन प्रणाम करने भर से ही गोदान के बराबर फल मिलता है। इसे छूने से दुगना और प्रसाद के तौर पर इसे खाने से तीन गुना पुण्य फल मिलता है।

ग्रंथों में ये भी कहा गया है कि इसकी जड़ में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओं में मुनि गण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फल में प्रजापति का वास होता है। इसलिए ग्रंथों में आंवले को सर्वदेवयी कहा गया है ।





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