- करवा चौथ 13 अक्टूबर को किया जाएगा। सुहागनों का ये पर्व द्वापर युग से चला आ रहा है। ये सुहागनों का व्रत है। शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना से ये व्रत करती हैं। आयुर्वेद के नजरिये से शरद ऋतु में आने वाले इस व्रत को करने से महिलाओं की सेहत भी अच्छी रहती है। सूर्योदय के साथ ही ये व्रत शुरू हो जाता है। जो कि शाम को चांद की पूजा के बाद खत्म होता है। इस बार करवा चौथ पर शुक्र अस्त रहेगा।
पहले करवा चौथ पर रहेगा शुक्र अस्त का दोष
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि 2 अक्टूबर से 20 नवंबर तक शुक्र अस्त रहेगा। मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के हवाले से कहते हैं कि शुक्र अस्त होने पर मांगलिक कामों के साथ सौभाग्य पर्व यानी करवा चौथ व्रत की शुरुआत नहीं की जा सकती। इसलिए जिन महिलाओं के लिए ये पहला करवा चौथ है उन्हें अगले साल से ये व्रत शुरू करना चाहिए। इनके अलावा जो महिलाएं पहले से ये व्रत कर रही हैं उनको शुक्र अस्त का दोष नहीं लगेगा।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि इस बार करवा चौथ पर शुक्र अस्त होने से नए पहले व्रत का संकल्प नहीं लिया जा सकता है। लेकिन जो महिलाएं पहले से ये व्रत कर रही हैं उन्हें कोई दोष नहीं लगेगा। बल्कि इस बार गुरु अपनी ही राशि में मौजूद है और गुरुवार को ही ये व्रत रहेगा। इसलिए ये संयोग इस व्रत के शुभ फल को और बढ़ा देगा।
तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्णकुमार भार्गव बताते हैं कि शुक्र ग्रह के अस्त रहते हुए नए व्रत की शुरुआत और अंत यानी उद्यापन नहीं किया जाता है। ऐसा ज्योतिष ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसलिए इस साल पहला करवा चौथ व्रत नहीं रखना चाहिए।
सेहत के नजरिये से खास है करवा चौथ
इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए बिना कुछ खाए पिए पूरे दिन व्रत रखती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक इस व्रत से महिलाओं की भी सेहत अच्छी रहती है। पुणे के आयुर्वेदिक कॉलेज की डॉ. पूनम यादव बताती हैं कि शरद ऋतु के दौरान शरीर में पित्त बढ़ता है। इससे होने वाली बीमारियों से बचने के लिए ये व्रत रखा जाता है। इस कारण महिलाएं दिनभर बिना पानी पिए रहती हैं और रात में मिट्टी के बर्तन से पानी पीकर व्रत खोलती है। ऐसा करने से मेटाबॉलिज्म बढ़ता है।
गणेश, चौथ माता और चंद्र देव की पूजा
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद निकलने तक रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहाती हैं और फिर दिनभर निर्जल यानी बिना पानी पिए व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। शाम को चंद्रमा का दर्शन कर के अर्घ्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर महिलाएं व्रत खोलती हैं। इस दिन श्रीगणेश, चतुर्थी माता और फिर चंद्र देव की पूजा होती है।