- गुरुवार, 13 अक्टूबर को पति-पत्नी का महापर्व करवा चौथ है। ये व्रत जीवन साथी के लिए समर्पण, प्रेम और त्याग का भाव दिखाता है। महिलाएं पति के सुखी जीवन, सौभाग्य, अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए दिनभर निराहार और निर्जल रहती हैं। इस रिश्ते में जब तक एक-दूसरे के बीच विश्वास है, तब तक प्रेम बना रहता है। अगर जीवन साथी पर अविश्वास का भाव जाग जाता है तो ये रिश्ता टिक नहीं पाता है। ये बात हम शिव जी और देवी सती की कहानी से समझ सकते हैं।
ये है शिव जी और सती की कहानी
रामायण का प्रसंग है। एक दिन शिव जी ने सती से कहा कि मैं रामकथा सुनना चाहता हूं। आप भी मेरे साथ अगस्त्य मुनि के आश्रम चलेंगी तो अच्छा रहेगा।
दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती को वैसे तो बहुत विद्वान थीं, लेकिन उन्हें कथा सुनना ज्यादा पसंद नहीं था। देवी विद्वान थीं तो हर एक काम तर्क के साथ करती थीं। जब शिव जी ने रामकथा सुनने की बात कही तो देवी सती भी पति की इच्छा का मान रखते हुए साथ चल दीं।
उस समय देवी सीता का हरण हो चुका था और श्रीराम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज कर रहे थे। दूसरी ओर, शिव जी और देवी सती उन्हीं राम जी की कथा सुनकर लौट रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें श्रीराम दुखी अवस्था में दिखाई दिए।
शिव जी ने जैसे ही राम को देखा तो दूर से प्रणाम किया और देवी सती से भी प्रणाम करने के लिए कहा। देवी सती को ये बात समझ नहीं आई। शिव जी जिस राम को भगवान मानते हैं, वे दुखी हैं और भटक रहे हैं।
सती ने शिव जी के कहा कि ये भगवान कैसे हो सकते हैं, ये तो दुखी हैं, पत्नी के दुख में रो रहे हैं।
शिव जी ने समझाया कि ये सब राम जी की लीला है। इन पर संदेह न करें।
सती तर्क को महत्व देती थीं तो उन्हें ये बात सही नहीं लगी। देवी सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने का मन बना लिया। शिव जी तो कैलाश पर्वत लौट गए, लेकिन सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
श्रीराम ने जैसे ही देवी सती को देखा तो प्रणाम किया और कहा कि देवी आप अकेली यहां कैसे आई हैं, महादेव कहां हैं? ये बात सुनते ही सती को समझ आ गया कि श्रीराम भगवान ही हैं।
वहां से सती चुपचाप कैलाश लौट आईं। शिव जी ने सती को देखा तो पूछा कि क्या आपने राम की परीक्षा ली?
उस समय सती ने शिव जी से झूठ बोल दिया कि मैंने तो परीक्षा नहीं ली, मैं भी राम जी को प्रणाम करके लौट आई हूं।
शिव जी देवी सती का स्वभाव जानते थे कि वे इतनी आसानी से हार नहीं मानती हैं। शिव जी ने ध्यान लगाया और पूरा प्रसंग जान लिया। इसके बाद शिव जी ने कहा कि देवी आपने मुझसे झूठ बोला, मेरे भगवान राम की परीक्षा सीता माता का रूप धारण करके ली, मेरी बात पर अविश्वास जताया, ये आपने अच्छा नहीं किया है। मैं आपका मानसिक त्याग करता हूं।
इस घटना के बाद से ही शिव जी और सती वैवाहिक जीवन बिगड़ गया था।
कहानी की सीख
इस प्रसंग की सीख यही है कि पति-पत्नी के लिए सबसे अधिक जरूरी है एक-दूसरे का भरोसा। अगर हम अपने जीवन साथ पर भरोसा नहीं करते हैं तो ये रिश्ता ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है।