- आज ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे अपरा या अचला एकादशी कहते हैं। इस व्रत में सुबह तीर्थ स्नान और फिर भगवान विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप या वामन अवतार की पूजा करने की परंपरा है। साथ ही दिन में जरुरतमंद लोगों को अन्न या जलदान किया जाता है। अपरा एकादशी का व्रत करने से बीमारियां और परेशानियां दूर होने लगती हैं। इस एकादशी पर स्नान-दान से गोमेध और अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है।
महाभारत और पुराणों में बताया है महत्व
आरोग्य देने वाली अपरा एकादशी अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ महीने के विशेष फल देने वाले व्रतों में एक माना गया है। इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। इस दिन नियम और विधि से भगवान की स्तुति करने से सुख-समृद्धि मिलती है और हर तरह के संकटों से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से दुश्मनों पर जीत मिलती है। साथ ही आरोग्य भी मिलता है।
अपरा एकादशी की पूजा विधि सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ जल से स्नान करें। साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु का ध्यान करें। पूर्व दिशा की में बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। कलश स्थापित करें और धूप-दीप जलाएं। पीले आसन पर बैठकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, फूल और अन्य पूजन सामग्री से पूजा करें। भगवान को तुलसी पत्र अर्पित करें। व्रत की कथा सुनें और आरती करने के बाद प्रसाद बांट दें।
धौम्य ऋषि ने किया था ये एकादशी व्रत धौम्य ऋषि जंगल से गुजर रहे थे तब उन्होंने पीपल के पेड़ पर एक राजा को प्रेत रूप में देखा। उन्होंने अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना। ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और उसका पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत के पुण्य से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।