- सावन महीने की आखिरी एकादशी 27 अगस्त, रविवार को है। शुक्ल पक्ष में आने वाली इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। महाभारत, पद्म और नारद पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत रखने से संतान सुख मिलता है।ऐसे लोग जो संतान सुख की कामना रखते हैं, उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। मान्यता है इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी बना रहता है।
कैसे करें ये व्रत
दशमी तिथि से ही एकादशी व्रत के नियमों पर चलने की मान्यता है। व्रत से एक दिन पूर्व ही सात्विक भोजन करें। एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, फिर घर के मंदिर में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें। पूजा में धूप, दीप, फूल-माला, अक्षत, रोली और नैवेद्य समेत 16 सामग्री भगवान को अर्पित करें। भगवान विष्णु को पूजा में तुलसी दल जरूर अर्पित करें। इसके बिना उनकी हर पूजा अधूरी मानी जाती है। इसके बाद पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें और आरती करें।
दीप दान का महत्व
एकादशी पर भगवान विष्णु का स्मरण करके किसी पवित्र नदी, सरोवर में अन्यथा तुलसी या पीपल के वृक्ष के नीचे दीपदान का भी महत्व है। दीपदान करने के लिए आटे के छोटे-छोटे दीपक बनाकर उसमें थोड़ा सा तेल या घी डालकर पतली सी रुई की बत्ती जलाकर उसे पीपल या बढ़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है। साथ ही जरूरतमंदों को सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
कथा सार
द्वापर यु्ग में महिष्मति नगर में महाजित नाम का एक राजा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। वो महल, वैभव सब कुछ होने के बाद भी संतान न होने के दुख से चिंतित रहता था। कुछ समय बाद उसने मंत्रियों को ऋषि- मुनियों के पास भेजा। उनमें से लोमश ऋषि ने ध्यान कर के उस राजा के पूर्व जन्म की जानकारी निकाली।
ऋषि को दिव्य शक्ति से पता चला उस राजा ने पिछले जन्म में नदी किनारे पानी पी रही गाय को भगा दिया था। जिससे वो प्यासी ही रह गई। इस पाप की वजह से उसे संतान नहीं हुई। लोमश ऋषि ने मंत्रियों को बताया कि राजा अगर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत और पूजा करें। इससे उसके पाप खत्म होंगे और संतान मिलेगी। राजा ने व्रत किया और उसे संतान मिली।