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जीवन साथी की बात पर करना चाहिए विश्वास

 

  • अभी नवरात्रि चल रह रही है और इन दिनों देवी मां की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा, पार्वती, माता सती, माता काली, महागौरी, शैल पुत्री आदि ये सभी एक ही देवी के अलग-अलग स्वरूप हैं। देवी पार्वती ही पिछले जन्म में देवी सती थीं। देवी से जुड़ी एक कथा रामकथाओं में बताई गई है।

देवी सती ने नहीं मानी शिव जी की बात

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक बात उस समय की है जब पंचवटी से देवी सीता का हरण रावण ने कर लिया था। श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे। बहुत कोशिशों के बाद भी सीता की खबर न मिलने से श्रीराम बहुत दुखी थे। जब श्रीराम की ये लीला चल रही थी, उस समय शिव जी और देवी सती ने श्रीराम को देखा। शिव जी ने दूर से ही श्रीराम को प्रणाम कर लिया, लेकिन माता सती के मन में शंका थी।

श्रीराम दुखी थे, रो रहे थे, ये देखकर सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि यही शिव जी के आराध्य राम हैं। देवी सती ने अपने मन की बात शिव जी को बताई तो शिव जी ने कहा, 'ये सब राम जी की लीला है, आप शक न करें। उन्हें प्रणाम करें।'

शिव जी के समझाने के बाद भी देवी सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि राम ही भगवान हैं। शिव जी समझाया, लेकिन देवी सती राम जी की परीक्षा लेने वन में चली गईं।

सीता का रूप धारण करके सती माता ने ली श्रीराम की परीक्षा

देवी सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं। देवी को देखते ही श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि देवी आप यहां अकेले कैसे आई हैं, शिव जी कहां हैं?

श्रीराम की ये बातें सुनते ही देवी सती को अपनी गलती का एहसास हो गया और वे चुपचाप शिव जी के पास लौट आईं। शिव जी ने सती से पूछा कि क्या आप ने राम जी परीक्षा ले ली?

देवी सती को पछतावा हो रहा था, डर की वजह से उन्होंने शिव जी से झूठ बोल दिया कि मैंने राम जी परीक्षा नहीं ली और मैं तो दूर से ही प्रणाम करके वापस आ गई हूं।

शिव जी देवी सती को जानते थे वे किसी भी बात पर आसानी से भरोसा नहीं करती हैं। उन्होंने ध्यान किया तो उन्होंने मालूम हो गया कि सती ने श्रीराम की परीक्षा ली है और फिर झूठ भी बोल रही हैं।

शिव जी ने सती से कहा कि आपने मेरे आराध्य राम की परीक्षा ली है और फिर झूठ भी बोला है, इसलिए मैं आपका मानसिक त्याग करता हूं।

इस घटना के कुछ समय बाद देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आयोजित किया, लेकिन शिव जी और सती को नहीं बुलाया।

देवी सती ने पार्वती के रूप में लिया दूसरा जन्म

जब ये बात देवी सती को मालूम हुई तो वे पिता के यहां जाने की जिद करने लगीं। शिव जी समझाया कि बिना निमंत्रण हमें वहां नहीं जाना चाहिए, लेकिन देवी सती नहीं मानीं। यज्ञ स्थल पर दक्ष ने सती के सामने ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कही तो देवी दुखी हो गईं। अपने पति का अपमान सुनकर देवी सती ने वहीं उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह का अंत कर दिया।

इसके बाद देवी ने अगला जन्म हिमालय राज और मैना के यहां पार्वती के रूप में लिया।

कथा की सीख

इस कथा की सीख यह है कि पति-पत्नी के बीच आपसी विश्वास होना बहुत जरूरी है। अगर विश्वास नहीं होगा तो वैवाहिक जीवन बर्बाद हो सकता है।


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