यह माॅं भी है, बेटी भी है,बहन भी है किसी की,
बड़े शौक से सजती हुई दुल्हन भी है किसी की।
कोई पूजता, कोई चाहता, कोई अदब से पुकारता,
कोई कोसता, कोई तोड़ता, कोई राक्षस सा प्रताड़ता।
कोई इश्क की मूरत बना कर, घर में अपने जोड़ता,
कोई कुछ पलों का भोग करके, बेदर्दी से छोड़ता।
बरसों पुराने घर को, छोड़ने की रित है,
पर क्यों भला बस इसके हिस्से में, बिरहा के गीत है।
यह प्यार है, यह दुलार है, यह जिंदगी का श्रृंगार है,
ममता भरे हाथों में फिर क्यों, बस दुखों का हार है।
यह पिता से सहमी हुई, भाई से डरती हुई,
यह पिया के संग खामोश सी, ससुराल में दबती हुई।
बच्चों को अपने पालती, शौक कितने हंस के टालती,
देखो वह झुक के पटक गई, जो कभी हंसी की डाल थी।
क्युॅं कुछ नहीं कहती हो तुम, क्युॅं सब से युॅं सहती हो तुम,
तुममें भी तो कुछ जान है, अपनी भी एक पहचान है।
तुमसे है जग यह जान लो, बड़ी कीमती हो यह मान लो,
तुम बिन यहां सब व्यर्थ है, तुम हो तो सब में अर्थ है।
जिसने यह सृष्टि श्रृंगारी है, वह औरत है वह नारी है
नारी शक्ति तुझको सलाम है, हर पुरुष पर तू भारी है।
लता सेन इंदौर मध्य प्रदेश