बिन ख्वाबों के भी खुशबू फैली हैं..
आ चुम लूं तेरे हाथों को,
आ चुम लूं तेरे होठों को,
अरमान हैं बहुत सारे,
रह गए हैं थोड़े से अधूरे,
ये यादों का सफर हैं,
जिसमें एक नई दुनियां सजाती हूं,
तेरे बाहों में अपनी जान सुकूँ पाती हूं,
तुम आओगे ये सोचकर,
मेरे दिल में बिन ख्वाबों के भी खुशबू फैली है।
राहत ये चाहत तुझको देखते ही मिलती हैं,
जिंदगी सिर्फ तेरे नाम से ही गुजरती हैं,
लाखों दर्द हो दिलों में,
पर तेरा मुस्कुराता चेहरा देख,
अजीब सी खुशियां ही खुशियां मिलती हैं,
तू पास है ये सोचकर,
दिन गुजार लेती हूं।
स्वरचित, मौलिक रचना
दुर्वा दुर्गेश वारिक "गोदावरी"
गोवा