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काश ऐसा होता, अपने लिए हम जी पाते।



काश ऐसा होता,

अपने लिए  हम जी पाते।


छोटी सी ज़िन्दगी,

अपनों के साथ बिताते।


भाग- दौड़ की दुनिया से,

थोड़ी हम भी राहत पाते।


काश  हर बंधन से  मुक्त हो 

अपना फ़ैसला ख़ुद कर पाते।


सारी बेड़ियां तोड़ कर ,

उन्मुक्त गगन में उड़ जाते ।


काश अपने ही हमें ना सताते,

मन की सारी बात बताते।


खुल के हम पर प्यार जताते,

पीठ पीछे ना छुरी चलाते।


काश सत्य पथ सब अपनाते,

पाप छोड़कर  पुण्य कमाते।


इर्ष्या -द्वेष को त्याग कर,

स्नेह दुलार अपनों पर लुटाते।।


ममता साहू कांकेर छत्तीसगढ़

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